कल्लन का जन्म 1930ई. में उत्तर प्रदेश के बहराइच जनपद के बीरपुर गाँव में हुआ था | इन के पिता का नाम बाउर अली एवं माता का नाम कुदरता था | बाल्य काल में कल्लन ज्यादा शिक्षा हासिल नहीं कर सके | परन्तु बाद में घर पर ही किताबों से पढ़ाई करते रहे धीरे धीरे कल्लन ने हिंदी उर्दू और अरबी भाषाओं का अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया |
उन्होंने कहा -
छा जाए कितना तुम पर मुसीबत के भी बादल
आबायी विरासत को हरगिज़ न मिटाना तुम
और उन्होंने यह भी कहा
साइंस सीखिए और फिरंगी जबान भी
मअ इसके इल्म ए दीन को हासिल भी कीजिए
आखिर कार कल्लन का 15 फरवरी 2005 में देहावसान हो गया | उन के कई नाम बताये जाते हैं कल्लन खान ;कलीम ;कल्लू कल्लन को ख़िराज ए अकीदत प्रस्तुत करते हुए रोशन प्रेमी लिखते हैं- तारीफ़ उनकी क्या लिखें बढती नही कलम, जि न्दा
नहीं जहां में जा पहुंचे वह अदम
कल्लन वीर पुरी एक सच्चे देश भक्त और धार्मिक व्यक्ति थे कल्लन सादगी पसंद आदमी थे वह ज्यादा हाव भाव से नहीं रहते थे वह सूती कपड़ा पहनते थे कभी कभी वह तख़य्युल की दुनिया में खो जाते थे कल्लन वीर पुरी का जीवन सादा था लेकिन उनके विचार बहुत ऊंचे थे उनका मानना था कि एक छोटी सी छेद नाव में हो जाने से नाव समंदर में गर्क हो सकती है ठीक इसी तरह अगर थोड़ा थोड़ा लापरवाही से फिजूलखर्ची की जाए तो इंसान कंगाल हो सकता है| कल्लन ने सादगी पूर्वक अपनी संपूर्ण जिंदगी बसर की| कल्लन बीरपुरी भले ही आज लोगो के बीच में नहीं हैं परंतु उनके अच्छे कार्य के कारण उन्हें याद किया जाता है
रहेगी चांद सितारों में रोशनी जब तक
कभी ना उनके फसाने भुलाये जाएंगे
No comments:
Post a Comment