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Monday, December 28, 2020

ग़ज़ल*हार कर बाज़ी तो सच्चे हैँ उदास* by Rahbar Gyabi

*ग़ज़ल*

*हार कर बाज़ी तो सच्चे हैँ उदास* 
*क्या हुआ आखिर कि झूठे हैँ उदास*

*आजकल के फैशनो  को जानकर*
*लोग कहते हैँ कि अंधे हैँ उदास*

*शादयाने बज रहे थे क्या हुआ*
*क्या हुआ कि सारे चेहरे हैँ उदास* 

*रोज़ जाते हैँ तवाएफ की गली*
*जाल में फँस कर परिंदे हैँ उदास*

*आप ने तो जीत ली दुनिया सभी*
*आप क्योंकर और कैसे हैँ उदास*

*आप के आने से रौनक थी बहुत*
*आप के जाने से चेहरे हैँ उदास*

*बज़्म से उठ कर मैं जब से आ गया*
*सुनता हूँ कुछ लोग तब से हैँ उदास*

*ज़ुल्म होता है ज़बा खामोश है*  
*ऐसे आलम में तो गूंगे हैँ उदास* 

*चाँद को देखा नहीं जब क्या कहूँ*
*साथ में रहबर के तारे हैँ उदास*
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*रहबर गयावी*
*पटना बिहार*
8507854206

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