#ये_कैसा_बदलाव !!!!!
ठग्गू बोला पेट पकड़ कर , हूँ बेहद परेशान ।
पुश्तैनी धंधा है मंदा , कारण है संविधान ।
कितना अच्छा वक्त जो बीता ,था पुरखों का राज।
घर बैठे ही मिल जाते थे ,पैसे वस्त्र अनाज ।
धर्म का नारा लगते ही ,सब घुटनों पर आ जाते ।
मनचाहे दुश्मन का पुरखे ,पत्ता साफ कराते ।
नारी थी उपभोग की वस्तु , यज्ञ-हवन, देवालय में,
देव की दासी चुनकर लाते ,करते भोग ईशालय में ।
सामाजिक अपमान था करना ,बाएं हाथ का काम।
नीच जात का घोषित कर दो ,समझो काम तमाम ।
सारा गाँव निरक्षर रखते , तर्क ज्ञान से दूर ।
अंधविश्वास की घूंटी देकर , रखते सबको चूर ।
जिसने ये संविधान लिखा ,ना समझे उसका दाँव ।
एक वार में ही कर डाला , ये कैसा बदलाव !!!!
🙏🙏🙏
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